《 मैं कौन हु 》 हिस्सा भी होनी चाहती हु भीड़ का, किस्सा भी होना चाहती हु, फिर डर कर नजरें भी फेर लेती हु, माँ-बाप की इच्छा के आगे सर मैं झुका लेती हु, कैसे कहु किसी से कहने मे कई मोड लेती हु। मैं वो किताब हु, जिसे जो पढ ले उसके लिए खुली किताब के समान हु। पर जो ना पढे उसके लिए वो Exam जिसके बारे मे कुछ पता ही ना हो। मैं वो नोटबुक हु, जिसमें पैन उठा कर लिखने चले, तो ये भूल जाए लिखना क्या है। मैं वो मैग्जीन हु, जिसके खाली पन्ने बहुत कुछ कहते है और भरे हुए सिर्फ दर्द देतें है। किसी का आज, तो किसी का आने वाला कल हु मैं । किसी की आंखो का पानी, तो किसी की पल भर की खुशी हु मैं। किसी का अक्स अधूरा, तो किसी का राज गहरा हु मैं। किसी की अंधेरी रात, तो किसी की आंखो की रोशनी हु मैं। किसी का सौदा, तो किसी की कशिश हु मैं। किसी की बेवफाई, तो किसी का जख्म गहरा हु मैं। किसी की दोस्त, तो किसी का प्यार अधुरा हु मैं। ...
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