जैसी मै हू, दुनिया मेरी नही है।
जैसी मै चाहती हू, ये दुनियाँ वैसी नही है।जैसी अच्छी दुनियाँ के सपने मैनें देखे है, ये वैसी नही है।
जैसे अच्छे इंसान चाहती हू, यहाँ वैसे नही है।
जैसी शान्ति मै चाहती हू, यहाँ वैसे नही है।
जैसा प्यार मैने चाहा है, यहाँ वैसे नही है।
जिस राह पे हम चल दिए है, वो सही नही है।
इस दुनियाँ मै हर एक व्यक्ति मेरे जैसा नही है।
जो समझ लोगों मे होने चाहिए, वो भी नही है।
जो इंसान खुद को समझ लेता है, वो भरम मे है।
जिस माहोल मे हम जि रहे है, वो सही नही है।
जैसा इमान लोगों मे होना चाहिए, वो इस दुनियाँ के लोगों मे नही है।
जैसी इंसानियत होनी चाहिए, वो इन लोगों मे नही है।
जैसी मै चाहती हू, ये दुनिया वैसी नही है।
इसलिए ये दुनियाँ, मेरी नही है।
जैसा हम चाहते है, इस दुनियाँ मे वैसा कुछ भी नही है।
सच तो ये है, हम यहाँ जीने के लिए इस दुनियाँ जैसा बनना पड़ता है, इसलिए ये दुनियाँ मेरी नही है।
~Kajal Kaushik
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